दीमक

deemak-lagi-kitab चलो दोस्तो, इस भीषण गर्मी में चलते हैं दीमकों के ठंडे-ठंडे कूल-कूल वातानुकूलित घर में। वह दीमकों की बांबी कहलाता है। और, उसमें एक-दो सौ नहीं कभी-कभी तो लाखों दीमकें रहती हैं। बांबी में उनकी पूरी बस्ती बसी रहती है।

तुमने कभी दीमकों की बांबी देखी हैं? अगर देखी है तो तुमने यह भी देखा होगा कि वह चारों ओर से बंद रहती हैं दीमकों का शरीर बहुत ही कोमल होता है। बांबी में बाहर की गर्म हवा घुस जाए तो दीमकें सूख कर मर जाएंगी। इसलिए वे अपने घर को चारों ओर से बंद कर देती हैं। अपने आने-जाने के लिए वे सुरंगें बना लेती हैं। कभी-कभी मकानों के भीतर या बाहर दीवारों पर मिट्टी की भूरी पतली नलियां दिखाई देती हैं। उन्हें देख कर समझ लेना कि वे दीमकों की सुरंगें हैं। वे सूखी हवा में सुरंग बना कर ही आगे बढ़ती हैं। इन्हीं सुरगों से होकर वे किताबों तक भी पहुंच जाती हैं।

दोस्तों, खुले में बना दीमकों का टीलेनुमा घर केवल घर ही नहीं पूरा किला होता है। बहुत ही कड़ा और मजबूत। कई बार तो उन्हें तोड़ने में आदमी के बनाए औजार तक टूट जाते हैं। तो, जरा सोचो, प्रकृति के ये नन्हें कारीगर सीमेंट की तरह इतना मजबूत घर कैसे बना लेते हैं? वे यह घर यानी बांबी बनाते हैं मिट्टी, लार और अपने मल से। हवा और धूप उसे सुखा कर कड़ा बना देती है। 

आमतौर पर दीमकों की ये बांबियां दो-तीन मीटर तक ऊंची होती हैं। अफ्रीका के घास के मैदानों में तो 9 मीटर ऊंची बांबियां भी देखी गई हैं। कुछ दीमकों की कुछ जातियां बांबी की चौड़ी दीवार को उत्तर-दक्षिण दिशा में बनाती हैं। इससे भीतर के वातावरण को उन्हें अपने लायक ठंडा-गरम रखने में मदद मिलती है। दोस्तो, हर बांबी भीतर से वातानुकूलित होती है। मतलब जैसे हम एयरकंडीशन करके घर को भीतर से ठंडा, गरम रखते हैं, वैसे ही दीमकें भी अपने घर को नम और गुनगुना बनाए रखती हैं।

दीमकों की बांबी में सैकड़ों कमरे, गलियारे, रास्ते और पगडंडियां होती हैं। वे सब आपस में जुड़े रहते हैं। उनमें बच्चों की नर्सरियां भी होती हैं। तुम्हें उनका घर भीतर से देखने पर भूलभुलैया जैसा लगेगा। लेकिन, दीमकें घुप अंधकार में भी उसके चप्पे-चप्पे को पहचानती हैं। हां दोस्तो, बांबी के भीतर अंधेरा रहता है। उजाले की जरूरत भी नहीं पड़ती क्योंकि मजदूर और सैनिक दीमकों की आंखें नहीं होती।

दीमकों की सभी जातियां इतने बड़े-बड़े घर नहीं बनातीं। वे पेड़ों, सूखे व सड़े-गले तनों, फर्नीचर या मिट्टी में भी अपने घर बना लेती हैं। वहां छिप कर रहती हैं। बस, भोजन की तलाश में बाहर निकलती हैं।

Termite_Cathedralउनका प्रिय भोजन है लकड़ी। जहां लकड़ी मिली उसे ये भीतर ही भीतर चुपचाप चाव से खाने लगती हैं। लकड़ी के अलावा ये घास, पत्तियां और सड़ी-गली खाद भी खाती हैं। और हां दोस्तो, कागज, कार्ड बोर्ड और किताबें भी इन्हें बहुत पसंद हैं। पढ़ने के लिए नहीं, खाने के लिए। किताबों को तो ये बस चटपट चट कर जाती हैं। मोटी-मोटी किताबों में सुरंग खोद कर आरपार छेद कर देती हैं।

तुम सोच रहे होगे, लकड़ी या कागज से भला इन्हें क्या मिलता होगा? दोस्तो लकड़ी, घास, कागज, रूई इन सभी में सेल्युलोज नामक पदार्थ होता है। दीमकों के पेट में सूक्ष्म जीव होते हैं। वे इसे पचा देते हैं। इस भोजन पर दीमकें खूब पलती-बढ़ती हैं। उनकी संख्या बढ़ती जाती है। एक मजेदार बात बताऊं? कुछ दीमकें तो बागबानी भी करती हैं! अपनी बांबी के कुछ कमरों में वे फफूंदी के बाग लगा लेती हैं। उनके मल पर फफूंदी उगती है जिसे वे खाती रहती हैं।      

एक बात और। जैसे हम दूध के लिए गाय पालते हैं, वैसे ही दीमकों की कुछ जातियां भी अपनी ‘गाएं’ पालते हैं। उनकी गाएं हैं कई तरह के कीड़े, जैसे बीटल। वही लाल-लाल बटन जैसे सुंदर बीटल जिनकी पीठ पर काले धब्बे होते हैं। उनके शरीर से तेल जैसा रस निकलता है। उसे दीमकें पी लेती हैं। दीमकें उन्हें रहने की जगह देती हैं। उनकी देखभाल करती हैं। इसलिए ये बीटल भी उनका साथ नहीं छोड़ते। कई बार नए घर की ओर जाती हुई हजारों दीमकों के काफिले में ये पालतू बीटलें भी दिखाई देती हैं।

दोस्तो, इन हजारों, लाखों दीमकों की विशाल बस्ती में राजा और रानी होते हैं, रक्षा के लिए सैनिक होते हैं और सबसे अधिक होती हैं मजदूर दीमकें। राजा-रानी बांबी में ही रहते हैं। दीमकें उनका सम्मान करती हैं। नर दीमक राजा कहलाता है और मादा दीमक रानी। नर और मादा दीमकों के पंख होते हैं। दूसरी दीमकों के पंख नहीं होते।

सूखे मौसम में पहली वर्षा के बाद नर और मादा दीमकों के झुंड उड़ते है।। वे नम और गर्म जगहों की ओर चले जाते हैं। वहां उनके पंख गिर जाते हैं। नर और मादा प्यार करते हैं। फिर मादा अंडे देती है। बहुत सारे अंडों के कारण उसका शरीर काफी लंबा हो जाता है। जानते हो वह कितने अंडे देती है? एक दिन में 30,000 तक अंडे! उन अंडों से बच्चे निकलते है। उनसे मजदूर और सैनिक तैयार होते हैं। इस तरह हजारों लाखों दीमकें हो जाती हैं। दोस्तो, ‘राजा’  यानी नर दीमक सदा रानी के साथ ही रहती है। राजा रानी से जीवन भर प्यार करता है। उसका शरीर दूसरी दीमकों से थोड़ा बड़ा होता है।

deemak-termite मजदूर दीमकें बांबी के निर्माण में जुट जाती हैं। न कोई नक्शा, न ईंट-पत्थर। लेकिन, प्रकृति ने इन नन्हे कारीगरों को ऐसी बुद्धि दी है कि वे मिल कर विशाल बांबी का निर्माण कर लेते हैं। ये सब अंधे कारीगर होते हैं। अंडों और बच्चों की देखभाल भी मजदूर दीमकें ही करती हैं। सभी दीमकों के लिए भोजन का इंतजाम भी वे ही करती हैं। आकार में सबसे छोटी, लेकिन दिन-रात काम में जुटी रहती हैं।

सैनिक दीमकें अपनी बस्ती की रक्षा करती हैं। वे दुश्मन पर टूट पड़ती हैं। लड़ने के लिए उनके जबड़े मजबूत और कड़े होते हैं। कुछ जातियों की दीमकों में सैनिकों के सिर बड़े और कड़े होते हैं। वे सुरंग के मुंह पर चट्टान की तरह अपना सिर लगा कर दुश्मन को रोक देते हैं। उनके पीछे सैनिक दीमकों की कतार लगी रहती है। अगर आगे का सैनिक लड़ाई में मारा जाए तो उसकी जगह दूसरा सैनिक ले लेता है।

दोस्तो, कई बार वे सैनिक बलिदान भी हो जाते हैं। अगर बांबी की दीवार अधिक टूट जाए तो बड़ी संख्या में सैनिक दीमकें उस जगह पर डट जाती हैं। दुश्मन के छक्के छुड़ाती रहती हैं। इस बीच मजदूर दीमकें बांबी की नई दीवार बना देती हैं। जांबाज लड़ाकू सैनिक बाहर ही छूट जाते हैं और बलिदान हो जाते हैं। बांबी पर हमले का ज्यादा डर चीटियों से होता है।

कुछ दीमकों में तो दुश्मन की कमर तोड़ने के लिए सैनिकों के जबड़े इतने बड़े होते है कि वे खुद खाना नहीं खा सकतीं। उन्हें मजदूर दीमकें खाना खिलाती हैं। कुछ सैनिक दीमकों की थूथन होती है। वे उसमें से दुश्मन पर जहरीला चिपचिपा रस फेंकती हैं।

दोस्तो, जरा ध्यान से सोचो। एक बांबी और हजारों-लाखों दीमकें। फिर भी न उनमें कोई झगड़ा होता है, न कोई कामचोरी करता है। वे प्रेम से रहते हैं। अपना-अपना काम करते हैं। उनकी बस्ती सदा खुशहाल रहती है। हमें भी दीमकों से सबक लेना चाहिए। क्यों ठीक है?

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One Thought to “दीमक”

  1. Respected sir g ,Pranam , apko apke prayaso ko,
    achha hota yade ap deemak per lekh k sath sath bachaw k gharelu satek upay bhe batlate,
    taki mere jaise pedit ko kush madad mil jate,

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